Thursday, July 24, 2008

मै हूँ वो किताब




तारीफ़ करते करते आपकी कही हम ही न खो जाये,

कैसे करे तारीफ़ आपकी आप ही हमें बताये ,

इतने करीब आ जाएये की कोई बीच मे दीवार ना रहे,

पर फासला फिर भी इतना हो की आँचल मेरा बेदाग़ रहे,

आप ही मेरे चाँद है आप ही सूरज ,

मेरे हरेक सवाल का आप ही है जबाब ,

जिसके हरेक पन्ने पर लिखा है आपका ही नाम

मै हूँ वो किताब।

संजीत कुमार

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