तारीफ़ करते करते आपकी कही हम ही न खो जाये,
कैसे करे तारीफ़ आपकी आप ही हमें बताये ,
इतने करीब आ जाएये की कोई बीच मे दीवार ना रहे,
पर फासला फिर भी इतना हो की आँचल मेरा बेदाग़ रहे,
आप ही मेरे चाँद है आप ही सूरज ,
मेरे हरेक सवाल का आप ही है जबाब ,
जिसके हरेक पन्ने पर लिखा है आपका ही नाम
मै हूँ वो किताब।
संजीत कुमार
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