Friday, July 25, 2008

चार बूंद अश्क




लुट कर मेरे दिल , सबने दिल अपना बसाया,

नींदे मेरी चुरा कर, अपनी रातो को है सजाया।

जिन्दगी के रहगुजर पर, जरुरत परी जिसे रोशनी की,

मै ही हूँ वो चिराग, हर बार सबने जिसे जलाया।

अपनों के इस भीर मै, मिला न कोई अपना,

ढूंडा था जिस एक को, उसने भी हमें रुलाया ।

दुआ ये है की मेरी आँखों को समुंदर मिले

चार बूंद जो अश्क मिले थे, उससे कब का मैंने गवाया ।

संजीत कुमार

Thursday, July 24, 2008

मै हूँ वो किताब




तारीफ़ करते करते आपकी कही हम ही न खो जाये,

कैसे करे तारीफ़ आपकी आप ही हमें बताये ,

इतने करीब आ जाएये की कोई बीच मे दीवार ना रहे,

पर फासला फिर भी इतना हो की आँचल मेरा बेदाग़ रहे,

आप ही मेरे चाँद है आप ही सूरज ,

मेरे हरेक सवाल का आप ही है जबाब ,

जिसके हरेक पन्ने पर लिखा है आपका ही नाम

मै हूँ वो किताब।

संजीत कुमार

हंसी के फूल थोरे , दर्द यहाँ बेशुमार है- संजीत



जिंदगी का हर गुल , अपने लिए बेजार है ,

आंसू ही अपना हमसफ़र , दर्द ही अपना यार है ।

ढूंढ़ते थक गए हम उसे जिसके लिए बेकरार है ,

कोई तो इतना बता दे कहा बिकता प्यार है ।

चलना हमने भी सिख लिया , जीवन के हर राहो पर

अब हर वीरान मौसम भी , अपने लिए बहार है ।

क्या हसना क्या रोना , सब अपने लिए समान है ,

फूलो मे हमने है देखा , छिपा हुआ खार है ।

खुदा ने भी अनजाने मे , कैसे ये दुनिया बनाई

हंसी के फूल है थोरे , दर्द यहाँ बेशुमार है ।
"संजीत कुमार "

Wednesday, July 23, 2008

अपनी दुआओं का कब असर होता है .



जमाने मे कहा , टूटे दिलो का बसर होता है

उनके लिए तो अपना घर भी, बेघर होता है ।

है कौन जहाँ मे जो पूछे टूटे दिलो का हाल ,

वक्त पर इनका खुदा भी, इनसे बे नज़र होता है।

इस दिल के जलने , की कैसे होती खबर सबको ,

आख़िर एक चिराग से, कब उजाला शहर होता है ।

करे भी तो कैसे, इनके ज़ख्मो का हम इलाज ,

हर दवा इनके लिए तो , ज़हर होता है

पत्त्थरों को कहाँ ,होती है दिलो के परख ,

वो तोरते ही है उसको ,जो शीशे का घर होता है ।

दुआ ये है की, टूटे दिलो को मिले जीने का सबब,

दखेंये अपनी दुआऊ का, कब असर होता है ।

"संजीत कुमार "

लुटा है मुझे किसने मेरे यारो से ये पुछो- संजीत




लुटा है मुझे किसने मेरे यारो से ये पूछो,

दिल क्यों है सूना सूना बहारो से ये पूछो।


हर एक डूबे दिल को हमने ही था बचाया ,

पर हम कैसे डूबे सहारो से ये पूछो ।

यु तो मेरे कहकहे सभी ने सुने होंगे ,

रोते है किस तरह दीवारों से ये पुछो।


संजीत कुमार