लुट कर मेरे दिल , सबने दिल अपना बसाया,
नींदे मेरी चुरा कर, अपनी रातो को है सजाया।
जिन्दगी के रहगुजर पर, जरुरत परी जिसे रोशनी की,
मै ही हूँ वो चिराग, हर बार सबने जिसे जलाया।
अपनों के इस भीर मै, मिला न कोई अपना,
ढूंडा था जिस एक को, उसने भी हमें रुलाया ।
दुआ ये है की मेरी आँखों को समुंदर मिले
चार बूंद जो अश्क मिले थे, उससे कब का मैंने गवाया ।
संजीत कुमार