जिंदगी का हर गुल , अपने लिए बेजार है ,
आंसू ही अपना हमसफ़र , दर्द ही अपना यार है ।
ढूंढ़ते थक गए हम उसे जिसके लिए बेकरार है ,
कोई तो इतना बता दे कहा बिकता प्यार है ।
चलना हमने भी सिख लिया , जीवन के हर राहो पर
अब हर वीरान मौसम भी , अपने लिए बहार है ।
क्या हसना क्या रोना , सब अपने लिए समान है ,
फूलो मे हमने है देखा , छिपा हुआ खार है ।
खुदा ने भी अनजाने मे , कैसे ये दुनिया बनाई
हंसी के फूल है थोरे , दर्द यहाँ बेशुमार है ।
"संजीत कुमार "
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