जमाने मे कहा , टूटे दिलो का बसर होता है
उनके लिए तो अपना घर भी, बेघर होता है ।
है कौन जहाँ मे जो पूछे टूटे दिलो का हाल ,
वक्त पर इनका खुदा भी, इनसे बे नज़र होता है।
इस दिल के जलने , की कैसे होती खबर सबको ,
आख़िर एक चिराग से, कब उजाला शहर होता है ।
करे भी तो कैसे, इनके ज़ख्मो का हम इलाज ,
हर दवा इनके लिए तो , ज़हर होता है
पत्त्थरों को कहाँ ,होती है दिलो के परख ,
वो तोरते ही है उसको ,जो शीशे का घर होता है ।
दुआ ये है की, टूटे दिलो को मिले जीने का सबब,
दखेंये अपनी दुआऊ का, कब असर होता है ।
उनके लिए तो अपना घर भी, बेघर होता है ।
है कौन जहाँ मे जो पूछे टूटे दिलो का हाल ,
वक्त पर इनका खुदा भी, इनसे बे नज़र होता है।
इस दिल के जलने , की कैसे होती खबर सबको ,
आख़िर एक चिराग से, कब उजाला शहर होता है ।
करे भी तो कैसे, इनके ज़ख्मो का हम इलाज ,
हर दवा इनके लिए तो , ज़हर होता है
पत्त्थरों को कहाँ ,होती है दिलो के परख ,
वो तोरते ही है उसको ,जो शीशे का घर होता है ।
दुआ ये है की, टूटे दिलो को मिले जीने का सबब,
दखेंये अपनी दुआऊ का, कब असर होता है ।
"संजीत कुमार "
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