Friday, June 06, 2008

वो छुट गया बेगुसराय

जो लोग अपने घर से बाहर रहते है उन्हें अपना बेगुसराय बहुत याद आता है वो बाहर रह कर अपने घर को नही भूल पाते उन्हें घर की याद सताती है उन्ही मे एक है अम्बाला के रहने वाले राजेश राज ने अपनी बात कविता के द्वारा कही है

याद आता है वो बेगुसराय
वो कावर झील का समां, मधुवन की चाट ,
वो शंकर कुल्फी की आइस क्रीम
वो थी उसमे थी कुछ बात
वो अनुपम की मिठाई , वो मद्रास होटल का डोसा
वो रामजी की लस्सी और रोहिणी का समोसा
वो बायेक का सफर , वो टाउनशिप वाले रोड की हवा
वो सुभास पार्क की रौनक और कर्पूरी स्थान मन्दिर का समां
वो जी .डी कॉलेज मैदान में क्रिकेट और हारने पे झगरा
वो मेन रोड की गलियाँ और गलियों में भटकना ,
सब छुट गए है दूर याद आता है बस वो बेगुसराय
जनवरी की कड़ाके की सर्दी , वो बारिशों के महीने ,
वो गर्मी के दिन , जब छूटते थे पसीने
वो दश हरे की धूम , वो छठ में श्रद्दा
वो होली की मस्ती , वो दोस्तों की टोली
वो दीवाली के पटाखे और जन्माष्टमी की रोली
वो क्रिसना मार्केट की गलियां , वो टाउनशिप की लड़कियां
वो सावित्री की बालकनी और वो चित्रवानी की टूटी कुर्सियाँ
वो महिला कॉलेज की लड़कियां और उन की जोरिया ,
वो बिना लाईसेन्स की बाएक ,रायडिंग
और टाउनशिप की गेट पे पुलिस का पकड़ना बस छुट गए है
दूर हमको याद आता है वो अपना बेगुसराय
राजेश राज अम्बाला